वेद
सबसे पहले वेद की रचना आज से लगभग 3500 वर्ष पहले हुई थी। वेद चार हैं-
●ऋग्वेद
●सामवेद
●यजुर्वेद
●अथर्ववेद
इनमें से सबसे पहले ऋग्वेद की रचना हुई थी। ऋग्वेद में 1000 से अधिक प्रार्थनाएं हैं जिन्हें सूक्त कहा जाता है सूक्त का मतलब होता है 'अच्छी तरह से बोला गया' ऋग्वेद में मुख्य तीन देवताओं का वर्णन है। आग के देवता अग्नि हैं, युद्ध के देवता इंद्र है और सोम एक पौधा है। इस पौधे से एक विशेष प्रकार का पेय बनाया जाता था। इन प्रार्थनाओं की रचना ऋषियों द्वारा की गई थी, जो एक अत्यंत विद्वान पुरुष होते थे। कुछ महिलाओं ने भी ऐसी प्रार्थनओं की रचना की थी। ऋग्वेद में प्राक् संस्कृत या वैदिक संस्कृत का प्रयोग हुआ है। यह आज की संस्कृत से कुछ-कुछ अलग है।
इतिहासकार और ऋग्वेद
ऋग्वेद से कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं। यहाँ ऋग्वेद से कुछ सूक्तों को लिया गया है, जो विश्वामित्र और नदियों के बीच हुई बातचीत के बारे में है।
'ऋषि विश्वामित्र ने नदी की तुलना गाय और घोड़े से की है। वह नदी पार करना चाहते हैं। इसलिए वह नदी से प्रार्थना कर रहे हैं ताकि सुरक्षित पार कर जाएँ।'
इससे यह बातें पता चलती हैं कि लोग जहाँ रहते थे वहाँ नदी मौजूद थी।
घोड़े और गाय लोगों के लिए महत्वपूर्ण जानवर थे। यातायात के लिए रथों का प्रयोग होता था। नदी पार करने का शायद एक ही तरीका था, तैरकर, और ऐसा करने में जान का खतरा था।
ऋग्वेद में सिन्धु और इसकी सहायक नदियों का उल्लेख है। सरस्वती नदी के बारे में भी लिखा गया है लेकिन गंगा और यमुना का नाम ऋग्वेद में केवल एक ही बार आया है। अतः हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जब ऋग्वेद की रचना हुई थी तब अधिकतर लोग सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के पास रहते थे लेकिन उन लोगों को गंगा और यमुना के बारे में भी मालूम था।
मवेशी, घोड़े और रथ
ऋग्वेद में मवेशी, घोड़े और बच्चों (खासकर पुत्रों) के लिए प्रार्थनाएँ हैं। इससे पता चलता है कि उस जमाने में लोगों के लिए मवेशी और घोड़े कितने महत्वपूर्ण थे। इससे यह भी पता चलता है कि लोग बेटियों की तुलना में बेटों को अधिक महत्व देते थे। मवेशी का इस्तेमाल कृषि कार्यों और यातायात के लिए होता था। घोड़ो का इस्तेमाल रथ खींचने के लिए होता था। लोग लंबे सफर के लिए घुड़सवारी भी करते थे। घोड़ो और रथो का इस्तेमाल युद्ध में भी होता था। युद्ध अक्सर जमीन, मवेशी और पानी के लिए होते थे। युद्ध में जीते गए धन को समाज के हर वर्ग में बराबर में बाँटा जाता था तथा उसमें से कुछ धन का इस्तेमाल यज्ञ करने के लिए होता था। जौ खराब परिस्थिति में आसानी से उगता है और इसकी फसल जल्दी पकती है इसलिए जौ की फसल बहुतायत से होती थी।
यज्ञ
यज्ञ एक जटिल अनुष्ठान होता था। यज्ञ में आहुति दी जाती थी। जानवरों की बलि भी दी जाती थी।
सेना
एक नियमित सेना रखने की परंपरा शुरू नहीं हुई थी। सेना में अलग-अलग पेशों से लोग आते थे। उन्ही में से एक व्यक्ति को सेनापति के तौर पर चुना जाता था। लगभग हर पुरुष को युद्ध में भाग लेना पड़ता था।
ऋग्वेद में काम के आधार पर लोगो का वर्णन
●पुरोहित
●राजा
●जन
●आर्य
पुरोहित
जो लोग अनुष्ठान कराते थे उन्हें पुरोहित या ब्राह्मण कहा जाता था। ब्राह्मणों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान था।
राजा
शासक को राजा कहते थे। उस जमाने के राजा बाद के राजाओं की तरह नहीं थे। उनकी ना तो कोई राजधानी होती थी, ना तो कोई महल होता था और ना ही वे किसी प्रकार का टैक्स वसूलते थे। यह भी जरूरी नहीं था कि किसी राजा की मृत्यु के बाद उसका बेटा ही राजा बने।
जन
आम लोगों को जन या विश् कहते थे। आज भी हिन्दी भाषा मे लोगों के लिए 'जन' शब्द का प्रयोग होता है। विश् शब्द से ही वैश्य बना है। ऋग्वेद में कई जनों या विश् का उल्लेख है, जैसे कि पुरु जन, भरत जन, और यदु जन।
आर्य
जिन लोगों ने प्रार्थनाओं की रचना की थी वे अपने आप को आर्य कहते थे। आर्य लोग खानाबदोश थे जो मध्य एशिया में रहते थे। वे 1500 ई•पू• भारत आए थे, शुरू में वे पंजाब के आस-पास बस गए। उस समय भारत में रहने वाले मूल निवासियों को द्रविण कहा जाता था। समय बीतने के साथ आर्य भारत के अन्य भागों में फैल गए, जैसे कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और फिर आगे पूरब की ओर। इस प्रकार द्रविण लोगों की को विंध्याचल के दक्षिण की ओर जाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
★दास या दस्यु- आर्य अपने विरोधियों को दास या दस्यु कहते थे। दास लोग अलग भाषा बोलते थे और यज्ञ नहीं करते थे। समय बीतने के साथ 'दास' या 'दासी' शब्द का इस्तेमाल गुलामों के लिए होने लगा। युद्ध में बंदी बनाये गए लोगों को अपनी बाकी ज़िन्दगी दास के रूप में बितानी पड़ती थी।
महापाषाण और कब्रगाह
महापाषाण पत्थर से बनी एक रचना होती है। इनका इस्तेमाल किसी कब्रगाह पर निशान लगाने के लिए किया जाता था। महापाषाण को एक ही विशाल पत्थर से बनाया जाता था या फिर अनेक पत्थरों से। कुछ महापाषाण जमीन के ऊपर दिखाई देते थे, जबकि कुछ अन्य जमीन के नीचे। महापाषाण को शायद साइनपोस्ट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था इससे कब्रगाह को खोजने में आसानी होती थी। महापाषाण बनाने की परंपरा लगभग 3000 वर्ष पहले शुरू हुई थी। यह परंपरा दक्कन, दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और कश्मीर में प्रचलित थी। मृत व्यक्ति को कुछ विशेष बर्तनों के साथ दफनाया जाता था। इन बर्तनों को रेडवेयर और ब्लैकवेयर कहा जाता था। कुछ कब्रगाहों से लोहे के औज़ार और घोड़े के कंकाल भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि उस जमाने मे लोहे का इस्तेमाल होता था तथा इससे लोगों के लिए घोड़े के महत्व का भी पता चलता है। कुछ कब्रगाहों से सोने और पत्थरों के जेवर भी मिले हैं। कभी-कभी महापाषाणों में एक से अधिक कंकाल मिले हैं। वे यह दर्शाते हैं कि शायद एक ही परिवार के लोगो को एक ही स्थान पर अलग-अलग समय में दफनाया गया था। बाद में मरने वालों को पोर्ट होल के रास्ते कब्रों में लाकर दफनाया जाता था। ऐसे स्थान पर गोलाकार लगाए गए पत्थर या चट्टान चिन्हों का काम करते थे, जहाँ लोग आवश्यकतानुसार शवों को दफनाने दुबारा आ सकते थे।
इनामगाँव-एक विशेष कब्रगाह
इनामगाँव आज के महाराष्ट्र में पड़ता है। यह पुणे से 89 KM पूरब में स्थित है। यह भीमा नदी की सहायक नदी घोड़ के निकट है। इनामगाँव में लोग लगभग 3600 से 2700 वर्ष पहले रहते थे। कुछ लोगो को घरों में ही दफनाया जाता था। मृत व्यक्ति के साथ बर्तनों को भी दफनाया जाता था। इन बर्तनों में शायद कुछ खाने-पीने की चीजें रखी जाती थीं। ऐसे ही एक पुरास्थल से चार पाए वाला जार मिला है। उस जार के भीतर एक कंकाल था। इस जार को पांच कमरों वाले एक मकान के आंगन में रखा गया था। यह उस पुरास्थल के कुछ बड़े मकानों में से एक था। उस घर मे एक भण्डार गृह भी मिला है तथा मृतक के पैर को मोड़कर लिटाया गया था। इतिहासकारों का अनुमान है कि वह अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण और धनी व्यक्ति रहा होगा। हो सकता है वह एक समृद्ध किसान हो या गाँव का एक मुखिया हो।
Sudhanshu Mishra
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