तालिबान : Taalibaan

■ तालिबान कट्टर धार्मिक विचारों से प्रेरित कबाइली लड़ाकों का एक संगठन है। इसके अधिकांश लड़ाके और कमांडर पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमा इलाकों में स्थित कट्टर धार्मिक संगठनों में पढ़े लोग, मौलवी और कबाइली गुटों के चीफ हैं। घोषित रूप में इनका एक ही मकसद है। पश्चिमी देशों का शासन से प्रभाव खत्म करना और देश में इस्लामी शरिया कानून की स्थापना करना। ■ तालिबान जिसे तालेबान के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आंदोलन है जिसकी शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी। पश्तून में तालिबान का मतलब 'छात्र' होता है, एक तरह से यह उनकी शुरुआत मदरसों से जाहिर करता है। उत्तरी पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम का कट्टरपंथी रूप सिखाने वाले एक मदरसे में तालिबान के जन्म हुआ। ■ शीतयुद्ध के दौर में तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान के स्थानीय मुजाहिदीनों (शाब्दिक अर्थ - विधर्मियों से लड़ने वाले योद्धा) को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया, लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन का जन्म हो ...

NCERT History Class-6 Chapter-2 आरंभिक मानव की खोज में। Summary

आखेटक-खाद्य संग्राहक का जीवन

आरंभिक मानव आखेटक-खाद्य संग्राहक था। इसका मतलब है कि वह भोजन के लिए शिकार करता था और कंद-मूल-फल इकट्ठा करता था। आरंभिक मानव किसी खानाबदोश की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमता रहता था।

खानाबदोश जीवन के कारण

एक स्थान पर कुछ समय बीतने के बाद एक जगह पर भोजन के स्रोत समाप्त हो जाते होंगे अतः लोगों को नई जगह खोजने के लिए आगे बढ़ना पड़ता होगा। हम जानते हैं कि जानवर एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं इसलिए शिकार के नजरिये से लोगों के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाना महत्वपूर्ण रहा होगा।अधिकतर पौधे मौसम के हिसाब से फलते-फूलते हैं इसलिए कंद-मूल-फल और बीज समुचित मात्रा में पाने के लिए लोगों को मौसम के हिसाब से एक जगह से दूसरी जगह जाने की जरूरत होती होगी। कुछ नदियाँ और तालाब गर्मियों में सूख जाते हैं इसलिए लोगों को पानी की तलाश में नई जगह जाना पड़ता होगा।

पाषाण युग

आरंभिक मानव अपने औजार बनाने के लिए पत्थरों का उपयोग करते थे। इसलिए इस युग को पाषाण युग कहते हैं। पाषाण युग को तीन कालों में बाँटा गया है।
1- पुरापाषाण युग
2- मध्यपाषाण युग
3- नवपाषाण युग
पुरापाषाण युग का समय 20 लाख से 12 हज़ार वर्ष पहले तक माना गया है। इस युग के औजार बेढंगे हुआ करते थे। नवपाषाण युग के औजार छोटे और सुगढ़ हुआ करते थे । पत्थरों के अलावा औजार बनाने के लिए हड्डियों और लकड़ी का उपयोग होता था। पत्थरों से बने औजारों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनमें से कुछ हम आज भी उपयोग करते हैं जैसे कि घरों में मसाला पीसने के लिए सिलबट्टे का इस्तेमाल होते देखा जाता है।

पत्थरों के औजारों के उपयोग

1- मांस और हड्डियां काटने के लिए
2- पेड़ की खाल और जानवर की चमड़ी उतारने के लिए
3- फल और जड़ काटने के लिए

कुछ औजारों को हड्डी या लकड़ी से बने हैंडल से जोड़कर कुल्हाड़ी या हथौड़ी बनाई जाती थी।

पर्यावरण में बदलाव

पाषाणयुग का अधिकांश हिस्सा हिमयुग (Ice Age) के दौरान बीता था। उस जमाने में चारो ओर बर्फ ही बर्फ थी और धरती पर घास पात न के बराबर थी। तापमान में वृद्धि के कारण लगभग 12000 वर्ष पहले हिमयुग का अंत हो गया। इसके साथ ही जमीन का एक बड़ा हिस्सा साफ हो गया। सही तापमान मिलने से हरित पादप तेजी से पनपने लगे। हरे-हरे पौधों के पनपने से जानवरों और मनुष्यों के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ने लगी। यही वह समय था जब आज के जमाने के कई स्तनधारियों का विकास हुआ इससे मांस की उपलब्धता भी बढ़ गयी। हिमयुग के बाद घास के परिवार के पौधे पूरी दुनिया मे तेजी से पनपने लगे। धान, गेहूँ और मक्का जैसे पौधे घास के परिवार के सदस्य हैं यानि हमारे भोजन का अधिकांश हिस्सा घास के परिवार से मिलता है। यही वह समय रहा होगा जब लोगो ने अनाज का इस्तेमाल करना शुरू किया होगा।

पुरापाषाण युग में लोगों के रहने के कुछ मुख्य स्थान 

1- भीमबेटका (मध्य प्रदेश)
2- हुुंस्गी (कर्नाटक)
3- कुरनूल की गुफाएँ (आंध्र प्रदेश)

इन स्थानों की विशेषताएं

ये स्थान नदी के निकट हैं, इसका मतलब पानी की कोई कमी नहीं रही होगी। ये स्थान दक्कन के पठार पर हैं , दक्कन के पठार में प्रचुर मात्रा में पत्थर हैं, यानि औजार बनाने के लिए कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। 

उद्योग स्थल

जिन स्थानों में औजार बनाने के लिए प्रचुर मात्रा में पत्थर मिलते थे उन स्थानों का इस्तेमाल औजार बनाने के लिए किया जाता था इन्हीं स्थानों को उद्योग स्थल कहते थे। कुछ लोग उद्योग स्थल पर घर बनाकर रहते थे। ऐसे स्थानों को आवास उद्योग स्थल कहते हैं।

पत्थर के औज़ारों का निर्माण

पत्थर के औजारों को बनाने की दो विधियों का अनुमान इतिहासकारो ने लगाया है-

1- पत्थर से पत्थर को टकराना

इस तरीके से औजार बनाने के लिए एक हाथ मे पत्थर लेकर उस पर किसी दूसरे पत्थर से वार किया जाता था। ऐसा तब तक किया जाता था, जब तक सही आकार न मिल जाए।

2- दबाव शल्क तकनीक

इस विधि के अंतर्गत जिस पत्थर से औजार बनाना है उसे किसी सख्त सतह पर रखकर किसी बड़े पत्थर से पीट पीट कर सही आकार दिया जाता था।

आग की खोज

आग की खोज मानव जाति के लिए बहुत बड़ी क्रांति थी, इससे मानव जीवन अभूतपूर्व ढंग से बदल गया। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जंगल मे लगी आग के नतीजे देखकर लोगों ने आग का इस्तेमाल करना सीखा होगा। किसी ने गलती से मांस का टुकड़ा आग में गिरा दिया होगा फिर उसके पकने के बाद जब चखा होगा तो उसे पके हुए भोजन का स्वाद पता चला होगा। इसके पश्चात लोगों ने दो पत्थरों को आपस में रगड़ कर आग जलाने का तरीका सीखा होगा। कुरनूल की गुफाओं में राख के अवशेष मिले हैं इससे पता चलता है कि इन गुफाओं में रहने वाले लोग आग का इस्तेमाल करते थे। आग का इस्तेमाल कई कामों में हो सकता था जैसे आग से पेड़ो को जलाकर जंगल साफ करके बसने एवं खेती लायक भूमि प्राप्त करने के लिए, खाना पकाने के लिए तथा जंगली जानवरों को दूर रखने के लिए आदि।

शैल चित्रकला (Rock Painting)

पाषाण युग के लोग अच्छे कलाकार भी थे। पाषाण युग की कई गुफाओ में रॉक पेंटिंग मिली हैं जिनमे से भीमबेटका की गुफाओं में कई सुंदर तस्वीरे मिली हैं। अधिकतर चित्रों में जानवरों और शिकार को दिखाया गया है। इतिहासकारों का मानना है कि ऐसी तस्वीरों को किसी खास उत्सव के मौके पर बनाया जाता होगा या फिर शिकार पर जाने से पहले लोग ऐसी तस्वीरें बनाते होंगे। यह भी हो सकता है कि लोगों को इतना खाली समय मिलने लगा होगा कि अपने आस-पास की सुंदर प्रकृति को निहार सकें और उसके बारे में सोच सकें। इन चित्रों से यह भी पता चलता है कि लोग समूहों में रहने लगे थे। ऐसा माना जाता है कि अक्सर पुरुष ही शिकार पर जाते थे जबकि महिलाएं गुफा में रहकर बच्चों की देखभाल करती थीं। महिलाएं कंद-मूल-फल इकट्ठा करती होंगी।

Sudhanshu Mishra


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