तालिबान : Taalibaan

■ तालिबान कट्टर धार्मिक विचारों से प्रेरित कबाइली लड़ाकों का एक संगठन है। इसके अधिकांश लड़ाके और कमांडर पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमा इलाकों में स्थित कट्टर धार्मिक संगठनों में पढ़े लोग, मौलवी और कबाइली गुटों के चीफ हैं। घोषित रूप में इनका एक ही मकसद है। पश्चिमी देशों का शासन से प्रभाव खत्म करना और देश में इस्लामी शरिया कानून की स्थापना करना। ■ तालिबान जिसे तालेबान के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आंदोलन है जिसकी शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी। पश्तून में तालिबान का मतलब 'छात्र' होता है, एक तरह से यह उनकी शुरुआत मदरसों से जाहिर करता है। उत्तरी पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम का कट्टरपंथी रूप सिखाने वाले एक मदरसे में तालिबान के जन्म हुआ। ■ शीतयुद्ध के दौर में तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान के स्थानीय मुजाहिदीनों (शाब्दिक अर्थ - विधर्मियों से लड़ने वाले योद्धा) को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया, लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन का जन्म हो ...

एसिड से समुद्री जीवों का अस्तित्व खतरे में : Acid Threatens The Existence Of Marine Organisms

हमारी पृथ्वी का बड़ा भाग समुद्र से घिरा हुआ है। जिसमें नाना प्रकार की प्रजातियाँ निवास करती हैं। यदि इन जीवों पर खतरा आया, तो हमारा अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। सारे समुद्रों में एसिड का स्तर अभूतपूर्व गति से बढ़ रहा है और संभव है कि इस समय पिछले 30 करोड़ वर्षों में सबसे अधिक हो। वैज्ञानिकों का आकलन है कि एसिड के स्तर के बढ़ने की यह प्रक्रिया वर्ष 2100 तक 120 प्रतिशत तक हो सकती है।
        उनका मानना है कि इन परिस्थितियों में 30 प्रतिशत समुद्री प्रजातियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इसके लिए मनुष्यों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वर्ष 2100 में जिस तरह एसिड का स्तर बढ़ने की संभावना है, उसमें कोई भी मोलस्का जिंदा नहीं रह सकता। यह निश्चित रूप से बेहद चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। इस मुद्दे पर दुनिया के 500 से ज्यादा जाने-माने विशेषज्ञ कैलिफोर्निया में जुटे थे।
        इंटरनेशनल बायोस्फेयर-जीयोस्फेयर कार्यक्रम की अगुआई में हुए अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित कर दी गई है। इसमें कहा गया है कि एसिड स्तर बढ़ाने में इंसानी गतिविधियों का हाथ है, जो हर दिन दो करोड़ 40 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड समुद्र में घोल रहे हैं। औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से लेकर अबतक पानी 26 प्रतिशत ज्यादा एसिडिक हो गया है। वैज्ञानिकों को सबसे ज्यादा चिन्ता प्रवाल भित्तियों समेत समुद्री प्रजातियों पर पड़ने वाले असर की है। समुद्र की गहराई में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि जहाँ पानी में एसिड का स्तर, कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से ज्यादा है वहाँ सामुद्रिक जैव विविधता का 30 प्रतिशत हिस्सा इस शताब्दी के अंत तक खत्म हो जाएगा। एसिड उन समुद्री जीवों के लिए खतरा है, जिनका कवच कैल्सियम कार्बोनेट से बनता है।
        एसिड का सबसे ज्यादा असर आर्कटिक और अंटार्कटिक में देखा जा रहा है। इन समुद्रों में कार्बन व कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा और गैस का बढ़ता स्तर उन्हें बाकी दुनिया के मुकाबले बहुत तेजी से एसिड युक्त बना रहा है।

Sudhanshu Mishra

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