तालिबान : Taalibaan

■ तालिबान कट्टर धार्मिक विचारों से प्रेरित कबाइली लड़ाकों का एक संगठन है। इसके अधिकांश लड़ाके और कमांडर पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमा इलाकों में स्थित कट्टर धार्मिक संगठनों में पढ़े लोग, मौलवी और कबाइली गुटों के चीफ हैं। घोषित रूप में इनका एक ही मकसद है। पश्चिमी देशों का शासन से प्रभाव खत्म करना और देश में इस्लामी शरिया कानून की स्थापना करना। ■ तालिबान जिसे तालेबान के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आंदोलन है जिसकी शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी। पश्तून में तालिबान का मतलब 'छात्र' होता है, एक तरह से यह उनकी शुरुआत मदरसों से जाहिर करता है। उत्तरी पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम का कट्टरपंथी रूप सिखाने वाले एक मदरसे में तालिबान के जन्म हुआ। ■ शीतयुद्ध के दौर में तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान के स्थानीय मुजाहिदीनों (शाब्दिक अर्थ - विधर्मियों से लड़ने वाले योद्धा) को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया, लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन का जन्म हो ...

अलाउद्दीन खिलजी : प्रशासनिक एवं आर्थिक दृष्टि Alauddin khilji : Administrative And Economic Vision


■ अलाउद्दीन खिलजी एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ, व्यवहारिक राजनेता तथा महान प्रशासक था। उसने अपने शासन के पूर्व प्रचलित शासन व्यवस्था का बारीकी से मूल्यांकन किया और इसमें व्यापक सुधार किए। अलाउद्दीन का विश्वास था कि राजस्व का विकास पूर्णनिष्ठा के बिना संभव नहीं है, परंतु उसके राज्य में विद्रोह की समस्या बनी हुई थी। इस समस्या पर काबू पाने के लिए अलाउद्दीन ने विद्रोह संबंधी कारणों को जानने और विद्रोहों का समाधान करने का प्रयास किया।
■ उसके समय विद्रोह के चार कारण थे-
1- प्रजा के बीच एक धनी और उदण्ड वर्ग मौजूद था, जो बराबर सुल्तान की सत्ता को चुनौती देता था, इस वर्ग के रूप में अलाउद्दीन ने मध्यस्थ भूमिपतियों को दोषी ठहराया।
2- सामंत वर्ग में शक्तिशाली परिवारों के बीच वैवाहिक संबंध आदि से उनकी शक्ति में वृद्धि होती थी और वे सुल्तान को चुनौती देने के के लिए प्रेरित होते थे।
3- सुल्तान को अपने राज्य में घटित होने वाली सूचनाओं की पूरी जानकारी नहीं रहती थी, अतः षड्यंत्र और विद्रोह होते रहते थे।
4- राजधानी में त्योहारों एवं उत्सवों के अवसर पर मदिरापान होता था, जिससे षड्यंत्रकारी द्वारा लोगों को बहकाने का अवसर मिल जाता था, इससे सुल्तान के विरुद्ध असंतोष की भावना जन्म लेती थी।
        अतः अलाउद्दीन ने एक योग्य गुप्तचर व्यवस्था का गठन किया ताकि सभी महत्वपूर्ण सूचनाएं उसे मिलती रहें। उसने सामंतों के बीच वैवाहिक संबंधों को नियंत्रित कर दिया और मद्य निषेध का आदेश दिया। भूराजस्व व्यवस्था में परिवर्तन लाकर मध्यस्थ भूमिपतियों के सारे अधिकार छीन लिए गए।

सैनिक सुधार

■ अलाउद्दीन की शासन व्यवस्था का मूलाधार उनकी सेना थी, जो साम्राज्य विस्तार एवं निरंकुश शासन तंत्र के लिए आवश्यक थी। अलाउद्दीन ने स्थाई केंद्रीय सेना का निर्माण किया। फरिश्ता के अनुसार उसकी सेना में 4,75,000 अश्वारोही थे, जो 1000, 100 और 10 कि टुकड़ी में संगठित थे। प्रत्येक टुकड़ी के लिए सेनानायक होते थे, जो खान, मलिक, सिपहसालार आदि कहे जाते थे इन सैनिकों की नियुक्ति केंद्रीय सैन्य विभाग या दीवाने अर्ज द्वारा जांच के बाद की जाती थी, ताकि सेना की कार्य-कुशलता बनी रहे। इस विभाग द्वारा समय-समय पर सैनिकों का निरीक्षण किया जाता था। प्रत्येक सैनिक का हुलिया एवं नामावली तैयार की जाती थी, ताकि वह अपने स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को युद्ध में न भेज सके। अलाउद्दीन ने घोड़े को दागने की प्रथा भी चालू की, जिससे निरीक्षण के समय किसी भी घोड़े को दोबारा प्रस्तुत नहीं किया जा सके या उसके स्थान पर निम्न श्रेणी का घोड़ा नहीं रखा जा सके। इन दोनों प्रथाओं का प्रयोग बाद के काल में शेरशाह एवं अकबर द्वारा भी किया गया।
■ अलाउद्दीन के पूर्व सैनिकों को उनके वेतन के स्थान पर भूमि प्रदान की जाती थी। इस प्रथा में अनेक दोष थे। बहुत सैनिक कार्यमुक्त होने के बाद भी भूमि वापस नहीं करते थे जिससे राज्य को आर्थिक हानि होती थी। अलाउद्दीन ने इस प्रथा का अंत करके सैनिकों को नकद वेतन देना आरम्भ किया।

प्रशासनिक सुधार

■ अलाउद्दीन ने पुलिस और गुप्तचर विभाग की कार्य-कुशलता में वृद्धि की उसने पुलिस विभाग को ठोस रूप से संगठित किया। इसका मुख्य अधिकारी कोतवाल होता था। उसके अधिकार विस्तृत होते थे तथा उस पर विस्तृत उत्तरदायित्व होता था। गुप्तचर विभाग का मुख्य अधिकारी वरीद-ए-मुमालिक होता था, जिसके अंतर्गत अनेक संदेश वाहक होते थे, जो शहरों में नियुक्त किए जाते थे। वरीद के अतिरिक्त अलाउद्दीन ने अनेक सूचना दाता नियुक्त किए, जो मुन्यहान कहलाते थे। वे विभिन्न वर्गों के होते थे और वे सभी वर्गों के लोगों से संबंधित प्रत्येक बात की जानकारी सुल्तान को देते थे। इन्हीं अधिकारियों को अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण का श्रेय दिया जाता है।

आर्थिक सुधार

■ अलाउद्दीन के आर्थिक सुधारों को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1- लगान संबंधी सुधार
2- बाजार नियंत्रण

(1) लगान संबंधी सुधार 

इसके दो मुख्य उद्देश्य थे- 
A• राज्य की आमदनी में वृद्धि, जिससे साम्राज्य विस्तार के लिए विशाल सेना का निर्माण किया जा सके।
B• मध्यस्थ भूमिपति वर्ग जा दमन करके उनका धन छीनना, ताकि इस वर्ग द्वारा विद्रोह की समस्या का समाधान हो सके।
■ सर्वप्रथम अलाउद्दीन ने गंगा और यमुना के बीच के दोआब के क्षेत्र में लगान कि वृद्धि के आदेश दिए। किसान को उपज के एक-तिहाई के स्थान पर आधा हिस्सा लगान के रूप में देने का आदेश दिया। दूसरी ओर अलाउद्दीन ने दोआब क्षेत्र में कर मुक्त भूमि पर केंद्रीय नियंत्रण स्थापित कर दिया। इक्ता, इनाम, मिल्क और वक्फ के रूप में सामंती अधिकारियों और उलेमाओं के पास जो भूमि थी उसे खालसा भूमि में अर्थात सुल्तान के प्रत्यक्ष शासन के अधीन भूमि में परिवर्तित करने का आदेश दिया गया।
■ अलाउद्दीन संभवतः लगान निर्धारण की नीति में सुधार लाया। बरनी के अनुसार उसने भूमि की माप के आधार पर लगान निर्धारण के आदेश दिए इस पध्यति के लिए मसाहत शब्द का प्रयोग किया जाता है, लेकिन बरनी ने इस संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं दी है।
■ लगान वसूली के कार्यों में व्याप्त दोषों को दूर करने के लिए अलाउद्दीन ने एक नए विभाग दीवान-ए-मुस्तखराज की स्थापना की। इस विभाग का काम लगान की बकाया राशि वसूल करना था।
■ मध्यस्थ भूमिपति वर्ग में खुत, मुकद्दम एवं चौधरी का नाम आता है। ये लगान वसूली के कार्य में राज्य का सहयोग देते थे और किसान से लगान वसूल कर अधिकारियों को देते थे। इनके बदले इन्हें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त था। ये अपनी भूमि से रियायती दर पर लगान देते थे और किसान से सरकारी अथवा स्वराज के अतिरिक्त अपने लिए भी कर वसूलते थे। सामान्य रूप से खुत की स्थिति मुकद्दम और चौधरी के लिए अधिक महत्वपूर्ण थी। भूमि पर इनका वंशानुगत अधिकार था और राज्य द्वारा इनके अधिकारों को मान्यता प्राप्त थी, जबकि मुकद्दम और चौधरी क्रमशः गाँव के मुखिया और परगनों के प्रधान के रूप में थे। यह वर्ग सामान्यतः अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता था। किसानों से अधिक लगान लेकर और राज्य की लगान राशि का पूर्ण भुगतान नहीं करके यह वर्ग अत्यंत धनी बन गया था। धनी होने के कारण इनके लिए निजी सेना रखना आसान था और इन्हीं सैनिकों के माध्यम से विद्रोह करते रहते थे।
■ अलाउद्दीन ने इस वर्ग को कमजोर बनाने के लिए इनका धन छीनना आवश्यक समझा। उसने सर्वप्रथम इन भूमिपतियों को लगान वसूली के काम से मुक्त कर दिया और इन्हें रियायती दर पर लगान देने की सुविधा से वंचित कर दिया। इस तरह इस वर्ग की आर्थिक स्थिति पर आघात पहुँचा।
■ अलाउद्दीन ने कर प्रणाली में सुधार किया। उसने खराज अर्थात भूमिकर की दर में वृद्धि की। ख़ुम्स (अर्थात युद्ध मे लूटे गए धन में राजा का अंश) की दर में वृद्धि की गई। इसे 1/5 से बदलकर 4/5 कर दिया गया। उसने कई नए कर भी लगाए जैसे घरी अर्थात मकान पर लगने वाला कर, चराई कर अर्थात चारागाह पर लगने वाला कर इत्यादि। पूर्व काल में प्रचलित जजिया और जकात कर इस समय भी कायम रहे।

(2) बाज़ार नियंत्रण

■ अलाउद्दीन के आर्थिक सुधारों में बाज़ार नियंत्रण अर्थात मूल्य निर्धारण योजना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस योजना के संबंध में मुख्य रूप से जानकारी बरनी द्वारा लिखी तारीखे फ़िरोजशाही से मिलती है। इसके अतिरिक्त अमीर खुसरो ने अपनी पुस्तक खजाए नुल फुतूह, इसामी की पुस्तक फुतूह उल खलातीन और इब्न-बतूता के यात्रा वृतांत रेहला में इस योजना का वर्णन किया गया है।
         बरनी के विवरण से ज्ञात होता है कि अलाउद्दीन ने सात आर्थिक सुधार पारित किए थे- 
A• सभी प्रकार के अनाजों का मूल्य निर्धारण
B• अनाज बाजार में अधीक्षक की नियुक्ति
C• दोआब क्षेत्र में अनाज के माध्यम से लगान की वसूली
D• अनाज को दिल्ली तक लाने की व्यवस्था
E• अनाज सस्ता खरीदकर महँगा बेचने के विरुद्ध कठोर दण्ड
F• लगान वसूली की समुचित व्यवस्था और निर्धारित मूल्य पर सरकारी अधिकारियों को अनाज खरीदने की सुविधा
G• अनाज बाजार में दैनिक क्रियाकलाप के खिलाफ प्रतिवेदन और गुप्तचरों की नियुक्ति

बाज़ार नियंत्रण का उद्देश्य

■ अलाउद्दीन अपनी निरंकुश शासन प्रणाली को सुदृढ़ आधार देना चाहता था, जिसके लिए प्रजा को आर्थिक रूप से राहत देना चाहता था ताकि वे अपने राजनैतिक अधिकारों पर आक्षेप के विरुद्ध आपत्ति न करें।
■ अमीर खुसरो के अनुसार बाजार नियंत्रण नियंत्रण का उद्देश्य आम जनता को राहत पहुंचाना था।
■ कुछ इतिहासकारों ने इस योजना को मुद्रास्फीति की समस्या पर नियंत्रण करना बताया है।
■ बरनी के अनुसार इस योजना का उद्देश्य सैनिक उद्देश्यों से प्रेरित बताया गया है। अलाउद्दीन ने साम्राज्य विस्तार के लिए एक विशाल सेना संगठित की थी। इस सेना पर होने वाले खर्च में कमी लाने के लिए अलाउद्दीन ने सैनिकों को इस सीमित वेतन में दैनिक आवश्यकता की वस्तुएं उपलब्ध कराना आवश्यक था और इसके लिए मूल्यों पर नियंत्रण का मार्ग अपनाया गया।
        विभिन्न विचारों में सैनिक आवश्यकता से प्रेरित योजना का विचार ही अधिक मान्य है।

योजना का कार्यक्षेत्र

बाजार नियंत्रण के कार्यक्षेत्र के विषय मे इतिहासकारों में मतभेद है। इस योजना का क्रियान्वयन राजधानी दिल्ली और उसके समीपवर्ती क्षेत्र तक ही सीमित था या इसे राज्य के अन्य बड़े नगरों में भी लागू किया गया था। बरनी के अनुसार यह योजना केवल दिल्ली और उसके समीपवर्ती क्षेत्र तक ही लागू की गई थी। अमीर खुसरो के अनुसार इस योजना से सभी नगरवासी एवं ग्रामीण लाभान्वित हुए थे। प्रतीत होता है कि इस योजना का क्रियान्वयन का केंद्र दिल्ली ही था और इसे लागू करने के क्रम में सीमावर्ती क्षेत्रों के मूल्यों में कमी आई जिसमें पंजाब मध्य भारत और दोआब के कुछ भाग भी प्रभावित हुए।

प्रभाव

अलाउद्दीन ने अपने शासनकाल की पूरी अवधि में मूल्यों में वृद्धि नहीं होने दी, लेकिन इतिहासकारों में इस बात पर मतभेद है कि अलाउद्दीन के मूल्य निर्धारण संबंधी उपाय सभी वर्गों के लिए या कुछ विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों के लिए लाभदायक सिद्ध हुए। अमीर खुसरो के अनुसार इस योजना का लाभ समस्त प्रजा को हुआ। बरनी के अनुसार अलाउद्दीन के समय मे सामंती सैनिकों, बड़े अधिकारियों और धनी व्यापारियों को छोड़कर अन्य लोगों के पास धन नहीं था। योजना का लाभ वास्तव में केवल सामंत और सैनिक वर्ग को ही था। मूल्यों में गिरावट से क्रयशक्ति में वृद्धि हुई।

Sudhandhu Mishra

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