तालिबान : Taalibaan

■ तालिबान कट्टर धार्मिक विचारों से प्रेरित कबाइली लड़ाकों का एक संगठन है। इसके अधिकांश लड़ाके और कमांडर पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमा इलाकों में स्थित कट्टर धार्मिक संगठनों में पढ़े लोग, मौलवी और कबाइली गुटों के चीफ हैं। घोषित रूप में इनका एक ही मकसद है। पश्चिमी देशों का शासन से प्रभाव खत्म करना और देश में इस्लामी शरिया कानून की स्थापना करना। ■ तालिबान जिसे तालेबान के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आंदोलन है जिसकी शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी। पश्तून में तालिबान का मतलब 'छात्र' होता है, एक तरह से यह उनकी शुरुआत मदरसों से जाहिर करता है। उत्तरी पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम का कट्टरपंथी रूप सिखाने वाले एक मदरसे में तालिबान के जन्म हुआ। ■ शीतयुद्ध के दौर में तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान के स्थानीय मुजाहिदीनों (शाब्दिक अर्थ - विधर्मियों से लड़ने वाले योद्धा) को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया, लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन का जन्म हो ...

छत्रपति शिवाजी महाराज : Chhatrapati Shivaji Maharaj



6 जून 2021 को मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक दिवस की वर्षगाँठ के अवसर पर गोवा सरकार ने एक लघु फ़िल्म जारी की है।

छत्रपति शिवाजी महाराज के विषय में

■ शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को वर्तमान महाराष्ट्र राज्य में पुणे जिले के शिवनेरी किले में हुआ था।
■ शिवजी का जन्म एक मराठा सेनापति शाहजी भोंसले के घर हुआ था। जिन्होंने बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे एवं सुपे की जागीरें प्राप्त की थीं। 
■ शिवजी के जीवन पर उनकी माता जीजाबाई के धार्मिक गुणों का गहरा प्रभाव था। माता जीजाबाई एक धर्मपरायण महिला थीं।

प्रारंभिक जीवन

■ वर्ष 1645 में किशोरावस्था में पहली बार शिवाजी ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया जिसके परिणामस्वरूप बीजापुर के अधीन तोरण किले पर सफलतापूर्वक नियंत्रण प्राप्त कर लिया था।
■ इन्होंने कोंढाना किले पर भी अधिकार किया। ये दोनों किले (तोरण और कोंढाना) बीजापुर के आदिल शाह के अधीन थे।

महत्वपूर्ण युद्ध

प्रतापगढ़ का युद्ध, 1659: यह युद्ध मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेनापति अफजल खान की सेनाओं के बीच महाराष्ट्र के सतारा शहर के पास प्रतापगढ़ के किले में लड़ा गया।
पवन खिंड का युद्ध, 1660: यह युद्ध मराठा सरदार बाजी प्रभु देशपांडे और आदिलशाही के सिद्दी मसूद के बीच महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के पास (विशालगढ़ किले के आसपास) एक पहाड़ी दर्रे पर लड़ा गया। 
सूरत का युद्ध, 1664: यह युद्ध गुजरात के सूरत शहर के पास छत्रपति शिवाजी महाराज और मुग़ल कप्तान इनायत खान के बीच लड़ा गया।
पुरंदर का युद्ध, 1665: यह युद्ध मुग़ल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया।
सिंहगढ़ का युद्ध, 1670: यह युद्ध महाराष्ट्र के पुणे शहर के पास सिंहगढ़ के किले पर मराठा शासक शिवाजी महाराज के सेनापति तानाजी मालसुरे और जय सिंह प्रथम के अधीन एक राजपूत दुर्गरक्षक उदयभान राठौड़ के बीच लड़ा गया।
कल्याण का युद्ध, 1682-83: इस युद्ध में मुग़ल साम्राज्य के बहादुर खान ने मराठा सेना को हराकर कल्याण पर अधिकार कर लिया था।
संगमनेर का युद्ध, 1679: यह युद्ध मुग़ल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया। यह आखिरी लड़ाई थी जिसमें मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज लड़े थे।

मुग़लों के साथ संघर्ष

■ मराठों ने अहमदनगर के पास और वर्ष 1657 में जुन्नार में मुग़ल क्षेत्र पर छापा मारा। औरंगजेब ने नसीरी खान को भेजकर छापेमारी का प्रत्युत्तर दिया, जिसने अहमदनगर में शिवाजी की सेना को हरा दिया था।
■ शिवाजी ने वर्ष 1659 में पुणे में शाइस्ता खान (औरंगजेब के मामा) और बीजापुर की एक विशाल सेना को हराया।
■ शिवाजी ने वर्ष 1664 में सूरत के मुग़ल व्यापारिक बंदरगाह को अपने कब्जे में ले लिया।
■ जून 1665 में शिवाजी और राजा जयसिंह प्रथम (औरंगजेब के प्रतिनिधि) के बीच पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
        इस संधि के अनुसार, मराठों को कई जिले मुग़लों को देने पड़े और शिवाजी औरंगजेब से आगरा में मिलने के लिए सहमत हुए। शिवाजी अपने पुत्र संभाजी को भी आगरा भेजने के लिए तैयार हो गए।

शिवाजी की गिरफ्तारी

■ जब शिवाजी वर्ष 1666 में आगरा में मुग़ल सम्राट से मिलने गए तो शिवाजी को लगा कि औरंगजेब ने उनका अपमान किया है जिससे वे दरबार से बाहर आ गए। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर बंदी बना लिया गया। शिवाजी और उनके पुत्र के आगरा से भागने की कहानी आज भी प्रामाणिक नहीं है। इसके बाद वर्ष 1670 तक मराठों और मुग़ल के बीच शांति बनी रही।
■ मुग़लों द्वारा संभाजी को दी गई 'बरार की जागीर' उनसे वापस ले ली गई थी। इसके जवाब में शिवाजी ने चार महीने की छोटी सी अवधि में मुग़लों के कई क्षेत्रों पर हमला कर उन्हें वापस ले लिया।

उपाधि

■ शिवाजी को 6 जून 1674 को रायगढ़ में मराठों के राजा के रूप में ताज पहनाया गया था।
■ इन्होंने छत्रपति, शककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत और हैंदव धर्मोधारक की उपाधि धारण की थी।
■ 3 अप्रैल, 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई।

शिवाजी के अधीन प्रशासन

केन्द्रीय प्रशासन: इसकी स्थापना शिवाजी द्वारा प्रशासन की सुदृढ़ व्यवस्था के लिए की गई थी जो प्रशासन की दक्कन शैली से काफी प्रेरित थी।
        ● अधिकांश प्रशासनिक सुधार अहमदनगर में मलिक अंबर के सुधारों से प्रेरित थे।
        ● राजा राज्य का सर्वोच्च प्रमुख होता था जिसे 'अष्टप्रधान' नामक आठ मंत्रियों के एक समूह द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी।
        ● पेशवा, जिसे मुख्य प्रधान के रूप में भी जाना जाता है, मूल रूप से राजा शिवाजी की सलाहकार परिषद का नेतृत्व करता था।
राजस्व प्रशासन: शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसे रैयतवारी प्रणाली से बदल दिया तथा वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की स्थिति में परिवर्तन किया जिन्हें देशमुख, देशपांडे, पाटिल एवं कुलकर्णी के नाम से जाना जाता था।
        ● शिवाजी उन मीरासदारों का कड़ाई से पर्यवेक्षण करते थे जिनके पास भूमि पर वंशानुगत अधिकार थे।
        ● राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली से प्रेरित थी, जिसमें भूमि के प्रत्येक टुकड़े को रॉड या काठी द्वारा मापा जाता था।
        ● चौथ और सरदेशमुखी आय के अन्य स्रोत थे। चौथ कुल राजस्व का 1/4 भाग था जिसे गैर- मराठा क्षेत्रों से मराठा आक्रमण से बचने के बदले में वसूला जाता था। जबकि सरदेशमुखी मराठा क्षेत्र के शासकों द्वारा मुख्य शासक को दिया जाने वाला कर था जो कुल आय का 10 प्रतिशत था।
सैन्य प्रशासन: शिवाजी ने एक अनुशासित एवं कुशल सेना का गठन किया। सामान्य सैनिकों को नकद में भुगतान किया जाता था, लेकिन प्रमुख और सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजम या मोकामा) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।

Sudhanshu Mishra

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